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“प्रहार कुदरत का “
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सदी का यह साल बीसवॉं उम्रभर याद रहेगा,
कुदरत का प्रहार कड़ा हमसभी को याद रहेगा।
दौड़ती भागती बुलंदियों को छूती जिंदगी,
अचानक ही जैसे अल्पविराम लगा ।
जिंदगी यूँही बंद कमरों में सिमट जायेगीं ,
यह शायद हमने कभी सोचा न होगा ।
किसी को खुला आसमां देखने की ,
खुली हवा में सांस लेने की ख्वाहिश।
तो किसी को दो वक्त के राशन का
जुगाड़ करने की मशक्कत।
न जाने कितने बेरोजगार हुए,
न जाने कितने घरों के चिराग बुझे ।
जिन शहरों में हजारों सपने,
ख्वाइशों और उम्मीदों संग आये थे ।
आज वही शहर बेसहारों के लिए बेगाने हुए।
एक अदृश्य शक्ति ने हमें कितना है मजबूर किया ,
आज हर कोई अपनी एक लड़ाई है लड़ रहा।
आखिर वक्त ही तो है,एक दिन गुजर जायेगा,
बस इसी आस में हर एक दिन है कट रहा।।
••••••• राजश्री राजभर