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जीवन हो संक्रांति
Hindi Poetry |
गहरी गहरी खाईया
झीलों की गहराइयां
नभ से निकली उतर रही
जीवन की परछाईया
झीलों की गहराइयां
नभ से निकली उतर रही
जीवन की परछाईया
सुंदरता आनंद
उड़ती हुई पतंग
सबने बाँची नभ में नाची
ठहरी कही उमंग
बच्चो की होती किलकारी
खुशियो की शहनाईयां
उड़ती हुई पतंग
सबने बाँची नभ में नाची
ठहरी कही उमंग
बच्चो की होती किलकारी
खुशियो की शहनाईयां
कब तक होगी भ्रान्ति
जीवन हो संक्रांति
मिल मिल कर के बिछुड़ रही
ह्रदय की सुख शांति
अपनापन था बीत गया
न होगी भरपाईया
जीवन हो संक्रांति
मिल मिल कर के बिछुड़ रही
ह्रदय की सुख शांति
अपनापन था बीत गया
न होगी भरपाईया
कहा गए वो छंद
जीवन का मकरन्द
महकी महकी गंध
सुरभित से सम्बन्ध
थर थर काया काँप रही
खोई कही रजाईयां
Good poem