« शिक़ायतों से अब… | मजबूर मैं था और क्या था मेरा ख़ुदा भी… » |
उठे उठे से जज़्बात…
Hindi Poetry |
उठे उठे से जज़्बात में किस को क्या बताऊँ
कोई मुझको समझ ले तो फिर उस से कुछ न छुपाऊँ
आते जाते जिसको देखा, वो पहले मिल चुका था
वो नहीं आया जिसको सोचा था गले लगाऊँ
कोई मुझको समझ ले तो फिर उस से कुछ न छुपाऊँ
पानी आँखों मे बहुत था पर ये बात थी हल्की
ज़ाया करूँ दिल की नमी सूखी क्यों डगर बनाऊँ
कोई मुझको समझ ले तो फिर उस से कुछ न छुपाऊँ
समझना मुझे आसां है दिल में सफ़ाई रख कर
दर खुला न सही, मैं नज़रों से दिल में समाऊँ
कोई मुझको समझ ले तो फिर उस से कुछ न छुपाऊँ
मत गिराना आँखों से ख़फ़ा हो कर मेरा आँसू
मैं खोटा सही, बेउम्मीद ही कभी काम आऊँ
कोई मुझको समझ ले तो फिर उस से कुछ न छुपाऊँ
हैं जज़्बात मेरे बेहिसाब, कभी सब्र से सुनना इन्हें
तुम हो जाओ मेरे, दास्तां ए दिल लबों पे सजाऊँ
कोई मुझको समझ ले तो फिर उस से कुछ न छुपाऊँ
उठे उठे से जज़्बात में…
I needed to compose a comparable (or it seems comparable,
based on the info given) study newspaper back in 2015 when I was a student.
Gathering the required information was rather hard and hard.
But you managed to show the subject really accessible and understandable.
Anyways, it was intriguing to refresh some things and discover something new out.