« 4 lines | हे विघ्नहर्ता » |
Hindi Poetry |
आज कोई नगमा लिखने को हूं
आज फिर गमजदा हूं
आज लगा कि वो और मैं
दूर है अभी बहुत
काश अब भी काश है
और मैं अब भी कमजोर हूं
ये जिस्म का रिश्ता है
या मन का नर्म कम्बल
जो मुझे उसके खोने के ख्याल पर
रुला रहा है
वो दूर जा रहा है
या पास आ रहा है
उसका अक्स है
या वो छुपा है
वो जो साया
मुझे देखकर
मुस्कुरा रहा है
उसने जबान देदी है
और दिल भी शायद
अब निभाना होगा
उसे भी और मुझे भी
मेरे राम मेरे कृष्ण
मुझे तू राम और कृष्ण
दोनो बना दे
क्योकि मेरे महबूब के लिऐ
एक काफी नही