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ग़ज़ल: एक शख्स मिला था…बा-रदीफ़ ‘हुआ’
Hindi Poetry |
एक शख़्स मिला था कड़ी धूप में मुझे *
पानी की आरज़ू में जो लहू बेचता हुआ
सस्ती थी उसकी जान महँगी थी पर साँसे
हथेली में दो कौड़ी की लक़ीरें खेंचता हुआ
पैदाइश पे अपनी कब उसका था इख़्तियार
अब पैर छोटी सी चादर में वो समेटता हुआ
रोज़ ही आता है ख़ुदा उसके झीने ख़्वाब में
रोज़ हक़ीक़त को आर-पार वो देखता हुआ
रहा वो ला-जवाब ही पेट के सवाल पर
अंगार पर दिल के वो अरमान सेंकता हुआ
क्यूँ टूटता नहीं कभी सोचो ज़रा वो ‘सब्र’
कई पेट अपने जिस्म पे वो लपेटता हुआ
सोचा ये उसने रोज़ ही बेचती वो खुद को **
बाज़ार मिला हर शख्स खुद को बेचता हुआ
* ग़ज़ल का मतला एक दोस्त के फॉरवर्ड संदेस से
** और आख़िर में, एक दोस्त ए अज़ीज़
शायरा का शेर बतौर शगुन…
Bahot khoob ..
Shukriya Janaab!
very nice
Thank u very much Sushil ji!