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सबको खलने लगा मेरा क़द है
Hindi Poetry |
सरबुलन्दी का जुर्म आयद है
सबको खलने लगा मेरा क़द है
सुख के लमहे कपूर माफ़िक हैं
दुख जमा जैसे पा-ए-अंगद है
अर्थ हैं सर के बल खड़े सारे
नेक जिसको कहें वही बद है
रोज ही इक नया है हंगामा
जिन्दगी है मेरी कि संसद है
कौन महफ़ूज अब शहर में है
ताफ़लक दुश्मनों की अब ज़द है
बोलती अब है बम धमाकों से
बेज़ुबानी की आज ये हद है
मोल है आदमी का कौड़ी भर
बेशक़ीमत है कुछ अगर, पद है