« मिला करते तो, मेरी, जान तुम भी खूबियां जाते। | ज़िन्दगी कोई फूलों का बिस्तर नहीं » |
शिक्वा और शिकायत
Hindi Poetry |
मेरे कहने से ज़यादा नहीं, बस एक घूंट पियो,
इस दुनिया के बनाये रस्मो-रिवाज़ को तोड़ो।
चल चलो उस क्षितिज के पार,
जहाँ सिर्फ आज़ादी ही आज़ादी हो,
जहाँ डर बस डर के नाम से डरता हो,
और इंसान इंसान को इंसान समझता हो।
एक नया मज़हब कायम करो,
जहाँ इंसान का दिमाग ही श्रेष्ठ हो,
जहाँ अंध-विश्वास की बू तक न हो,
जहाँ हर इंसान एक ख़ुदा हो,
इन ख़ुदाओं में आपस में ईर्षा न हो,
जहाँ औरत जाति की पूजा हो,
और हर औरत एक देवी हो।
माफ़ करना,
अगर शक्ति होते तूने यही बनाया,
तो तुझ में कुछ कमी है,
गर तुझ में इतनी शक्ति नहीं,
तो तू मेरा ख़ुदा नहीं।
Vaah vaah bahut badhiyaa
manbhaavan abhivyakti
Khudaa kahegaa baaharii duniyaa kii baat chodo vo sudharegii nahiin
Khud ke anadar ki dunyaa dekho paaoge sab kuch jaisaa chaaho vahiin ….! 🙂