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रोटी
Hindi Poetry |
तुम्हारे कटोरे सोने के हों
और तुम उनमें जवाहरातों की सौगात बटोरो
फिर भी तुम्हारा साथ निबाहता हूँ।
क्यूंकि मैं – अपने काठी कटोरे में रोटी
और अपने बटोरे में चाँद चाहता हूँ।
–
दुनिया और रोटी दोनों एक जैसी हैं
पढ़े लिखे कहते हैं दोनों गोल हैं
फर्क इतना है कि रोटी थोड़ी छोटी है.
मेरी निगाह में एक फर्क और है
रोटी मेरी दुनिया है और
दुनिया तुम्हारी रोटी है.
–
रोटियों की दरख़्त होती
तो उसकी भी लकड़ी काट
तुम अपने घर के दरवाजे बनाते.
और हम बेच के तुम्हें अपना दरख़्त
उसी दरवाजे को पोंछ पोंछ
अपनी रोटी कमाते खाते.
–
मेरे ही खेत का गेहूँ
तुम्हारे घर में जाता है
और उसी गेहूँ की रोटी
मेरा बच्चा खाता है.
फिर तुम्हारे घर में
ऐसा क्या मिलाया जाता है?
कि तुम्हारा बच्चा ‘सर’
और मेरा ‘छोटू’ कहलाता है?
–
मैं गिरा हुआ हूँ
रोटी सी छोटी चीज के लिए चिल्लाता हूँ
मेरी बुद्धि, रोटी का छोटापन नहीं समझ पाती है
तुम उठे हुए हो – आसमान से देखते हो;
और दूर से हर चीज छोटी नजर आती है.
–
रोटी रोटी करते करते
एक दिन मैं भी रोटी हो जाऊँगा
फिर तुम मुझे खा लेना
फिर मैं नहीं चिल्लाऊंगा।
रोटी को असफलता से सफलता की चोटी तक दर्शाती एक अद्भुत रचना…
बहुत-बहुत बधाई विकास भाई… 🙂
sashakt rachna,chaand to hamse door tha hi, ab to roti bhi door ja rahi mahsoos hoti hai, kya jo bhi cheez gol hoti hai dheere dheere nazar se gol ho jani hai?
मेरी निगाह में एक फर्क और है
रोटी मेरी दुनिया है और
दुनिया तुम्हारी रोटी है…. vaah vaah sandarbh me atisundar aur sangeen
gahan marmsparshii utkrasht rachanaa
aaj ke so called unnat par dishaaheen Samaaj par bakhuubi prabhaavi marmik vyang…
Hearty kudos
awesome rachna-vikas jee aik roti ke kaee pahloo aapne badee hee gambheerta se darshaaye hain-aik hakeekat ko aapne apnee shashakt prastutikarn se anaavrit kar diya hai-bahut sundr haardik badhaaee
फिर तुम्हारे घर में
ऐसा क्या मिलाया जाता है?
कि तुम्हारा बच्चा ’सर’
और मेरा ’छोटू’ कहलाता है?
Wow, excellent expression of the differences in our society. Sad, but real.