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ढूंढ़ता था पहले ग़ज़ल अब मुझे ले आई है…………..
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मैंने नहीं हालात ने ये कलम फिर उठाई है
ढूंढ़ता था पहले ग़ज़ल अब मुझे ले आई है
अब इन हवाओं से क्या गिला करते हो तुम
ताश के पत्तों कि ये मीनार किसने बनाई है
अभी खुद को समेटा नहीं तुझसे मैंने
फासलों से भी भला होती कहीं जुदाई है
ज़िन्दगी उलझी हुई नज़र आती है शाम से
नींद में फिर उसने ज़ुल्फ़ कोई उलझाई है
मैं तो कई बार डूब कर इश्क से निकला
है आग का दरिया ग़ालिब ने बात बनाई है
लिख सकें तो दास्ताँ मेरे दर्द की लिखे ज़माना
हाथ में सबके नश्तर मेरे खून की रौशनाई है
जब ज़हर खा लिया था मैंने दवा जान कर
पगली क्यों तू वक़्त ए आखिर ये दवा लाई है
दोस्त भी कहने लगे मुझे शराबी इनदिनों
हमने तो महज़ प्यास शराबों कि बुझाई है
ये किसी बेनूर शाम सा चेहरा ये बुझी आँखे
किसी भूले हुए मंज़र की याद तुझे भी आई है
शायर भी करते नहीं शायरों में शुमार मुझे
चाँद उन्हें दे कर सूरत तेरी उनसे चुराई है
मैं क्या गिला उसकी रहमतों का उस से करूँ
नहीं मिले जो तमाम उम्र वही तो खुदाई है
मौत के पहलु में सो जाता हूँ आज शकील
नींद का ऐतबार क्या हमे नींद कब आई है
In my opinion had the gazal (or whatever it is) been a bit shorter it would have been more effective and engaging.May give a thought to the famous saying-brevity is the essence of wit.
सिन्हा जी नमस्कार,
आप की राय का मैं पूरा सम्मान करता हूँ और आप यकीन जानिए किसी की
ग़ज़ल कविता नज़्म रुबाई कुछ भी पढने से ज़्यादा आपकी अनमोल राय पढने
में लुत्फ़ आता है और मैं काफी कुछ सिख रहा हूँ आपसे आपका ये प्यार और
ये स्नेह ख़ुदा करे ऐसे ही मेरे साथ रहे।
आपका
शकील
Sidhnath jee…
Aap raay dene ke alaawa bhi kuch jaante hai? ya yahi aapka shauk hai? aap kisi bhi nazm ya gazal ka lutf uthane se jyada usame khaamiyaan dhundhte nazar aate hai… maano ki p4poetry par isi waaste hai aap… jara dil bada kariye aur fir padhiye… kya pata aap ko bhi isme khubsoorti nazar aa jaaye…
Bura mat maniyega magar jo dil me tha so likh diya…
Nice…
Man bhaayii bahut aur lagii bhii badhiyaa
jo nayii aapkii ye alag see gazal yahaan aaii hai
badhaaii
bahut acche bhaav haiM
Shakeel jee…
Hamesh ki taraf bahut khoob…