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था वही दिन कल भी जो की आज होने जा रहा
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नित स्वप्न कि गलियों से होता मै फिर पहुँच गया भोर में ,
थी बड़ी ही भीड़ फिर भी मै अकेला शोर में ,
है वही संताप दिल का ज़िन्दगी कि दौड़ में ,
फिर दिवस जायेगा ये भी आंकड़ो के जोड़ में ।
था वही दिन कल भी जो कि आज होने जा रहा ,
दिन कि पुनरावृत्ति कर, मै फिर शाम सोने जा रहा ,
क्या यही नियति है मेरी जो निरंतर चल रही ,
ज़िन्दगी कि शाम मेरी क्यूँ निरर्थक ढल रही ,
क्या किया दिन भर जो मैंने शाम गर्वित हो सकूँ ,
दिन के अर्जन पे मै फूला शाम को थक सो सकूँ,
वो जो भूखा कल का था, वो आज भी भूखा ही है,
लाख घर खुशियां मनाये ,उसका घर सूखा ही है ,
वेदना मेरी समर्पित पर मै क्या कुछ कर सका ?
जितना वो मरता है पल पल उतना पल भर मर सका?
कर सकूँ इतना मै उसको कि मुझे खुद पर हो नाज़ ,
है नहीं सामर्थ्य मेरी इसलिए मन व्यथित आज।
व्यथित मन है मेरा और वेदना भी है भरी ,
कर सकूँ कुछ कर्म पावन है ये अभिलाषा खरी ,
किन्तु चित्त है ये चंचल शीत ऋतू कि धूप सा,
पल में ऐसा पल में वैसा मोहिनी के रूप सा,
सो गई फिर वेदना सब भाव मिट गए भाप से,
निज सुक्ष्मता कि अग्नि में सब मर्म बन गए राख से,
फिर रोज कि भगदड़ में मै भी रोज सा ही खो चला,
हर शाम सा इस शाम भी मै मुंह ढका और सो चला ,
फिर वही सपनो कि गलियों में भ्रमित मै खो चला,
किम कर्त्तव्य विमूढ़ सा हर शब्द मेरा रो चला ।
Rachanaa achchii bahut man bhaavan
badhaaii
kuch Hindi shabd jo galat chape hain unhe edit kad sudhaaranaa jaroori hai. Ve rachanaa kaa star bigaad rahe hain…
बहुत खूबसूरत !! कुछ शब्द सही नहीं लिखे गए हैं उन्हें ठीक कर लें|
बहुत सुन्दर ले में कविता चली है, विचार भी स्पष्ट व्यक्त हुए हैं, बधाई!
@ vishvanand ji.. bahut shukriya sir.. galat shabdo ke liye mafi chahunga par maine ise mobile se upload kiya hai isliye jyada sudhar nahi kar pa raha.. ise jaldi sahi karunga
@parminder ji.. bqhut bahut dhanywad aur galat shabdo ke liye mafi chahta hun. ise sudhar lunga..
Padhte padhte baithe baithe hi thak gya.:(
उत्कृष्ट रचना….