« तो बता साँसों के साथ मद्धम मद्धम तू रूह में कैसे ना उतरे…!!! | विनती » |
माँ की ममता
Hindi Poetry |
माँ की ममता के आगे सबकुछ फिंके ,
उनके समक्ष कोई रंग न टिके।
जब हम सब प्रथम बार दुनिया देखे,
माँ , माँ कहकर ही चीखें।
उनके आगे कोई रंग न टिके।
सबसे पहले हम माँ की ही ऊँगली पकड़कर चलना सीखे,
तब जाकर अपने पैरों पे खरा होना सीखे।
उनके आगे कोई रंग न टिके।
सुख की छाया हो या दुःख के बादल मंडराए,
माँ हरदम साथ निभाए।
हसना रोना भी वो ही सिखलाये,
उनके आगे कोई रंग टिक न पाए।
सारी दुनिया माँ की कृपा से ही हमने देखे,
फिर भी कुछ इंसान उन्हें आदर से न देखे ,
वो इनके सन्दर्भ में न जाने क्या क्या सोचे,
पर माँ की ममता के आगे कोई रंग न टिके।
जो ही आदर करना सिखलाएँ,
उनका ही आदर हम कर न पाए।
सोचो जरा सोचो तब हम क्या पाएँ,
उनके आगे कोई रंग चढ़ न पाए।
माँ की ममता के आगे कुछ टिक न पाए,
कुछ रुक न पाएँ।
धीरज कुमार