« धमाचौकड़ी रहे चोर भर और सिपाही सो रिया. | तो बता साँसों के साथ मद्धम मद्धम तू रूह में कैसे ना उतरे…!!! » |
हर रोज चलता हूँ मैं, हर रोज जलता हूँ मैं…
Hindi Poetry |
हर रोज चलता हूँ मैं, हर रोज जलता हूँ मैं…
एक ख्वाब लिए आँखों में
एक आग लिए सीने में
हर रोज चलता हूँ मैं, हर रोज जलता हूँ मैं
एक आस लिए दिल में,
एक प्यास लिए होठों पर
एक बात लिए ज़बाँ पर
एक फ़रियाद लिए ज़हन में
अल्हड, अलबेली,अलसाई, अकेली रातों में
हर रोज पिंघलता हूँ मैं….
हर रोज चलता हूँ मैं, हर रोज जलता हूँ मैं
कुछ अनकहे, अनसुने अलफ़ाज़ लिए
कुछ अनसमझे जज्बात लिए
कुछ अनसुलझे हालात लिए
हर रोज घर से निकलता हूँ मैं
हर रोज चलता हूँ मैं, हर रोज जलता हूँ मैं
हर रोज चलता हूँ मैं, हर रोज जलता हूँ मैं…
दिनेश गुप्ता ‘दिन’ [ [https://www.facebook.com/dineshguptadin ]
क्या बात है बहुत खूब कहा आपने ..
सुन्दर रचना और अभिव्यक्ति
बधाई
अति सुंदर
बधाई स्वीकारें
बहुत सुन्दर!