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निहायती घटिया इंसान
Hindi Poetry |
मैं निहायती घटिया इंसान हूँ.
लोग देश की व्यवस्था,
जनता की बेकारी और
अपंग गवर्नमेंट से परेशान हैं
और मैं अपनी तबियत से परेशान हूँ.
मैं निहायती घटिया इंसान हूँ.
ग्लोबल के जमाने में
मेरी समस्याएं बिलकुल लोकल हैं.
पर्सनल हैं, स्वार्थी हैं, छोटी हैं.
नेताओं के नाले और अरबों के घोटाले
के वक्त – मेरी बुद्धि बिलकुल मोटी है.
अपनी चिंता चींटी की माफ़िक है
एक बूँद चीनी है, दो वक्त की रोटी है.
एक वोट के बदले मैं क्या क्या न लेता हूँ
तब ही तो कहते हैं –
मैं सेल्फिशनेस की खान हूँ.
जी हाँ! मैं निहायती घटिया इंसान हूँ .
प्रशंसनीय उत्कृष्ट मार्मिक रचना
अंतर्मन तक जाने और हिलानेवाली
Heartfelt Kudos
bahut khoob
सुन्दर और संवेदनशील और कहीं कटाक्ष भी लगता है, पर उत्कृष्ट है!
अगर ऐसी ही बात है तो में भी कहता हु, “मै निहायती घटिया इंसान हु…!”
🙂 Nice creation….! 🙂
स्वयं को घटिया बतलाना ही बड़ी इंसानीयत है,
ऐसे इंसान की बहुत कम ही बिगड़ती तबीयत है !
ब…हु…हु…हुत बढ़िया — गूढ़ और दार्शनिक !
क्यों कि मुझे भाषा में अशुद्धि अपच होती है, अतः आग्रह है कि
‘Vikash’ की spelling ‘Vikas’ लिखा करें तो सही होगा !
‘विकाश’ नामक कोई शब्द नहीं दिख पाया ! सही शब्द ‘विकास’ ही है,
जैसा कि मैंने शायद पहले भी आग्रह किया था ! सुझाव हेतु क्षमा करें !