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घृणा सरहद पार !
Hindi Poetry, May 2011 Contest |
हिंदू -मुस्लिम कभी हँस के गले मिला करते थे,
सभी के चमन मे देश प्रेम के फूल खिला करते थे!
एक ज़मीन थी,एक ही मुल्क मे हम साथ- साथ रहते थे ,
हमारा एक ही झंडा था ,भारत माँ की जय सब कहते थे!
वन्दे मातरम कह कर सभी मर मिटने को तैयार थे,
इनके जोश के आगे अँग्रेज़ी हुक्मरान भी बेकार थे!
देश को आज़ाद करने मे दोनो ने खून बहाया है ,
धरती माँ की शान की खातिर एक साथ शीश कटाया है !
आज सरहद पार से नफ़रत की आँधी आती है ,
कई बेगुनाहो के खून से धरती लाल लाल हो जाती है!
क्यो एक दूजे की लिए जहर उगलते फिरते हैं,
क्यो नफ़रत करने की सीख बच्चो को दिया करते हैं!
आज भी अपने कई रिश्तेदार शरहद पार रहते हैं,
पर एक को हिन्दुस्तानी दूजे को क्यो पाकिस्तानी कहते हैं!
जब एक ही माँ(धरती) की कोख से दोनो ने जनम लिया है,
तो हमने क्यो कोख को शरहद बनाकर जुदा किया है!
आज हम यूँ ही एक ज़मीन के टुकड़े के लिए लड़ते है,
जबकि सरहद के दोनो ओर कई बच्चे भूखे सोया करते हैं!
क्यो एक ज़रा सी बात हमे समझ नही आती है,
ये बेमतलब की घृणा ही हम दोनो को लड़ाती है!
अब ये घृणा छोड़ कर दोस्ती का हाथ बढ़ाना है,
हम एक थे और एक है, ये दुनिया को दिखाना है!
डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवा
बहुत बढ़िया रचना और बहुत अर्थपूर्ण सच्चाई
रचना के लिए अभिनन्दन और हार्दिक बधाई
commends
वैसे शरहद को सरहद और घिर्णा को घृणा होना चाहिए l इन्हें सुधारने की जरूरत है
डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवाजी
बहुत शुभ विचार का रचना बधाई हो आप को
वन्दे माता मेरा प्रणाम