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सरकारी दफ़्तर मे फाइल अटक जाती है!
Hindi Poetry |
इस रचना के मध्यम से मैं सरकारी दफ़्तर मे चल रहे गोरख धंधे का पुरज़ोर विरोध करता हूँ!
सरकारी दफ़्तर मे अच्छे अच्छों की सटक जाती है,
जब किसी की एक फाइल बीच मे ही अटक जाती है!
सर्वप्रथम एक अधेड़ उम्र का बाबू आपसे टकराता है,
आप के हाथ मे फाइल देख के मन ही मन मुस्काता है!
वो आप से कहेगा कुछ नही बस एक ” डर्टी” सा लुक देगा,
बिना कुछ कहे आपको इशारो मे काम की कीमत बता देगा!
आप बकते रहेंगे वो हर बात पर हूँ -हूँ कहेगा,
फिर धीरे से आप की फाइल एक कोने मे धरेगा!
कहेगा दो तीन दिन बाद आके पता कर लेना,
आप चतुर हैं तो बस यही इशारा समझ लेना!
नही तो ये दो तीन दिन दो तीन साल तक नही आएँगे,
और आप इसी ऑफीस के हज़ारो चक्कर लगाएँगे!
ये सरकारी दफ़्तर है यहाँ कोई “ट्रिक नही” चल पाती है
यहॉ तो बस हरे- हरे नोटो की भाषा ही समझ आती है!
कुछ तो बड़ी बेशर्मी से सेवा शुल्क के नाम पे दाम माँगेंगे,
तो कुछ चाय पानी कि बात कह कर आप पर गोली दागेंगे!
अब सोच क्या रहे हो प्यारे ,झट से जेब से कुछ नोट निकालो,
धीरे से हाथ मे थमा कर जो चाहे काम करवा लो!
ग़लत सही के चक्कर मे क्यो पड़ते हो प्यारे,
ये सरकारी दफ़्तर है यहाँ चलते है बस इशारे!
डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवा
बहुत अच्छे; बधाई;
रचना तो बड़ी सत्य, सटीक और सुन्दर है ,
बार बार सरकारी दफ्तर में फाइल अटक जाती ही है
आपने बतायी और सुझाई तरकीब भी अच्छी है
पर फिर ये ही रिश्वत लेनेवाले कहते रहते हैं
रिश्वत लेने वाले से रिश्वत देने वाले ज्यादा गुनाहगार है …
और अपने देश में इस पापी माहौल ने अपना घर अच्छा सा सजाया है 🙂
क्या बात है राजीव जी !
रोचक अंदाज में एक सरकारी आफिस का सजीव चित्रण किया है आपने .
हूँ-हूँ करने वाला बाबू ही तो नायक का रोल करता है वहां पर 🙂 उसके मुंह के अन्दर वो भी होता है….(चबा..घुमा और….. 🙂 )
बहुत खूब . काबिल-ए-तारीफ़ !
मजेदार रचना सर जी…
सरकारी दफ़्तर मे फाइल अटक जाती है!
और जिसकी फ़ाइल होती है.. वो लटक जाता है. 🙂
एक अच्छी रचना और लिखने का बढ़िया अंदाज ,विश्व जी के बातो से सहमत
रिश्वत लेने वाले से देने वाले ज्यादा गुनहगार होते हैं