« जब छोड़ गया तनहा, जो आँख का तारा था. | An autumn in wait.. » |
दृष्टिहीन!
Hindi Poetry |
रंग बिरंगी तितलियों के रंग धुल गये,
इंद्रधनुष के सात रंग जाने कहाँ उड़ गये!
पंछी पेड़ पर बैठे बस चूं-चूं करते हैं,
आसमान के तारे शायद यहाँ- वहाँ विचरते हैं!
रात ऐसी आई है की ख़त्म नही होती,
सुबह की चाहत मे ये आँख नही सोती!
ना कोई आकार ना कोई रंग समझ आता है,
मुझे जीने का बस एक ही ढंग समझ आता है!
अपने हाथो से ही दुनिया को देख लेता हूँ,
भावनाओं को मन मे ही जान लेता हूँ!
जिस एक पल के अँधियारे से सबका दिल घबराता है,
वही मुझे आगे बढ़ने की राह दिखलाता है!
रंग रूप की सुंदरता मुझे कहाँ भाती है,
मधुर वाणी ही सुंदरता का बोध करती है1
दृष्टिहीन हूँ पर औरो मे जीने की चाह जगा सकता हूँ,
कई भटके आँखवालो को भी सही राह दिखा सकता हूँ!
डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवा
अच्छी सन्देशप्रद रचना ! बधाई !
आकर- आकार,
अंधीयारे- अँधियारे,
@Harish Chandra Lohumi, dhanyavad-sudhar kar liya hai–phir se dhanyavad
nayan baadhit kintu drishti baadhit nahin.
@siddha Nath Singh, satya sir—dhanyavad
बहुत सुंदर उत्तरोतर विकास यात्रा जारी है मन प्रसन्न हो गया आज की कविता पढ़ करइस गति व् प्रगति को बनये रखें मेरी हादिक बधाई व् शुभकामनायें सदा आप के साथ हैं
रचना, इसके अंदाज़ और भाव अलग से बहुत मन भाये .
Dr Ved जी की प्रतिक्रिया का हार्दिक अनुमोदन
और बहुत बधाई
अति संवेदनशील रचना ! बधाई !
सुधा
बधाई ! बधाई !
bohut badhiya rachna bohut 2 badhai!!
its nice