चीजें – जो हैं
दिम्माग की खदान में कुछ बातें है –
जो छुपानी हैं, खुद से भी.
कुछ यादें हैं जो बेगानी है
एक लिखावट है – अनजानी है.
टूटी खपरैल है जिसका रंग उतरा है
मटमैली चप्पल है, जिसे धोना अभी बाकी है
एक झींगुर है जिसे बंद होना है
खाली माचिस की डिबिया में.
एक तितली है जो मेरे हाथों मरी है
एक औरत है जो हर अँधेरे में खड़ी है.
एक पोखर है – जो सूखा है
एक बरगद है, रूखा है.
मंदिर है – जिसकी दीवारों को सफेदी चाहिए.
घंटी है जो अब बजती नहीं.
एक फटा ढोल है – जिसपे चमड़े की तह लगानी है
भैरव गाना है, भूपाली गानी है.
३ इंच की स्क्रीन वाला एक कैमरा है
४ कोनों वाला एक कमरा है.
५ फीट की कद वाली एक लड़की है.
६ महीनों से खिचती एक नौकरी है.
और इन सबसे ७-८ मील दूर खड़ा हूँ मैं.
जिसका दिमाग एक खदान है
जिसमे कुछ बाते हैं
जो छुपानी हैं, खुद से भी.
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इक रचना ये है
जिसकी अनन्यता चीज़ों के परे है
ऐसी लिखी है
जो लगती प्रशंसा के भी परे है,
दिमाग की बत्ती जलाती बुझाती
जा रही है
समझते हुए भी
ना समझ आई सी लगती है
बधाई से Kudos के आगे निकली जा रही है ….
अच्छी और सधी हुई प्रस्तुति ।
sachmuch bahut saari cheeje rahti hai deemag main ,kuch anavashak hote hue bhi yaad rah jaati hai—bahut bahiya dost badahai
24 पन्क्तियाँ,
18.5″ Monitor Screen,
कितनी गहरी ये खदान है,
यही पूछना है खुद से 🙂
अच्छा लगी दिमाग की ये छवि(फोटो)