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पगली !
Hindi Poetry |
मेरे मोहल्ले मे अक्सर दिख जाती थी ,
बिखरे बालो वाली, गंदी सी एक औरत ,
चिथड़ो मे लिपटी,मैल से सनी ,
पगली सी लगती,अजीब सी थी सूरत !
कहाँ से आई थी,कौन उसका अपना था?
कोई प्यार से बोल दे शायद यही उसका सपना था ,
बच्चे उसे चिढ़ाते तो उनकी ओर लपकती थी ,
सुबह से सांझ तक गलियों मे भटकती थी ,
लोग उसे अक्सर घिर्णा से देखते थे ,
जो रोटी बच जाती उसकी ओर फेंकते थे ,
अपने घर के कुत्ते से भी सभी प्यार करते थे ,
पर उसके पास सभी जाने से भी डरते थे 1
इंसान का ये कैसा रूप प्रभु तूने बनाया है ,
ये कौन सा खेल है,जो तूने रचाया है ,
कहंते है मानव प्रभु की सर्वश्रेष्ट रचना होती है ,
कभी कभी हक़ीक़त शायद ऐसे भी दिखती है ,
एक दिन अचानक वो जाने कहाँ चली गयी ,
आसमान निगल गया या ज़मीन उसे खा गयी ,
जाने क्यो कुछ खो गया ऐसा लगने लगा ,
मोहल्ला भी शांत हो सूना -सूना दिखने लगा !
बाद मे खबर आई की वो मर गयी ,
धरती पर अपना किरदार अदा कर गयी ,
मालूम हुआ की उसे एक बीमारी ने घेरा था ,
उसकी अंधियारी जिंदगी मे एक और अंधेरा था ,
समाज के कुछ दरिंदो ने उसका शिकार किया था ,
कलंकित कोख का उसे अनचाहा उपहार दिया था ,
वाह रे! समाज क्या इंसानियत दिखाई है ,
तुम से बेहतर तो वध करता कसाई है!
डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवा
उत्तम रचना ,
समाज की बुराई पर कड़ा प्रहार किया है आपने….
bahut hi sundar rachna.
इस कविता और गद्य में क्या फर्क है समझायियेगा.
@s.n.singh, aap ke ishare ko samajh is rachna ko ek doosre roop main prastut kar raha hun–sujho ke liye bahut bahut dhanyavad
मुझे ये बहुत अच्छी story poem सी लगी ( जो भी इक poem present करने का तरीका है); गद्य नहीं
कुछ सुधार जरूरी हैं …
पगली से लगती = पगली सी लगती
उनकी और लपकती थी = उनकी ओर लपकती थी
अक्सर घिर्णा से देखते थे = अक्सर घृणा से देखते थे
उसकी और फैकते थे = उसकी ओर फेंकते थे
@Vishvnand, sudhar kar liya hai sir!aap jaisa guru paa kar main dhanya ho gaya hun!——thanks nahi likunga———.isi tarah pyar dete rahiyega
आप प्रयास बहुत अच्छा करते हैं और कविताओं के शीर्षक बहुत ही जानदार होते हैं आपके लेकिन अन्दर कहीं न कहीं कुछ और सुधार की जरूरत हमेशा महसूस होती आ रही है .
आशा है अगली रचना उच्च स्तर की होगी . धन्यवाद .
रचना बहुत अच्छी है
@renukakkar, thanks madam!
dhanyavad ,sudhar ki gunjaish to har rachna me hoti hai.kavi bhi tabhi likh pata hai jab use gunjaish nazar aati hai.Main apne aap ko kavi nahi kahta–kavi kahlane ki liye abhi bahut mehnat karni hai.Main poora pyayash karoonga ki aane wali rachnao ko aur behtar tarike se prastut kar sakoo.AAp sudhar ke liye prerit kar rahe hai –ye aap ka shen darshata hai— bahut bahut dhanyavad
इस रहना को भी अबतक 21 ने पढ़ा है, 6 मेम्बरों ने अपने कमेन्ट दिए हैं पर सिर्फ 4 ने rating किया है. 🙁