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नहीं चमन का हो रहा योंही बंटाढार
Hindi Poetry |
नहीं चमन का हो रहा योंही बंटाढार
माली खुद करने लगे कलियों का व्यापार.
नैतिकता सारी चढी घोटालों की भेंट.
संतोषं परमं सुखं पूरा मटियामेट.
रक्खा जिन्हें मुनीम था रहे मलाई चाट
रार मचा कर कर रहे भीषण बंदरबांट.
सबको आंसू खून के रुला रहा है प्याज
मोर बने फिरते मिलें चोरों के सरताज.
कुछ ऐसे माहौल में होता है आगाज़
आने वाला कल न हो जैसा है ये आज.
माया है ठगिनी महा समझें दास कबीर.
माल महाजन चीरते जितना पाते चीर.
महंगाई सुरसा भई मच्छर भर इंसान
रूपया सारा देस का स्विस में अंतर्ध्यान.
हुए बिकाऊ लीजिये इज्ज़त और सम्मान
बने प्रपंची पूज्य हैं, हैं हकीर रसखान. haqeer-tuchchh
पेड़ बड़े रस चूसते उजड़ी अदना घास
रावण सौ लंका रचें राम रहें बनवास.
मिनरल बेचन वास्ते जे सी बी ईजाद
माईन ओनर हो गए तज तेशा फरहाद.
गाँव गाँव बिकने लगी ठेका लगा शराब
फ़िक्र किसे है पीढियां होतीं अगर खराब.
हर चुनाव में ला रहे नेता नयी नकाब.
कांटे बनते बाद में बांटे हुए गुलाब.
साहब सूबा हो रहे खुद अपने में मस्त
फरियादी धीरज धरें हाकिम व्यस्त समस्त.
चली चवन्नी चोर की रिरियाते हैं साह
भूल गए भगवान् गज, लील रहा है ग्राह.
कितना भी कर लीजिये अन्वेषण अरु जांच
जुड़ता है क्या फिर भला टूटा चिटखा कांच.
लोलुपता का हो रहा नित प्रति नंगा नाच
कौरव पांडव सब रमे, संजय सभय उवाच.
उत्कंठा से देखिये अब कान्हा की राह.
अधरम पहुंचा चरम पर मांगे धरम पनाह.
अगल बगल घृत-अग्नि है,है ज्वाला की आंच ,
दुर्योधन के संग ही, रही द्रौपदी नाच !
बहुत अच्छा मंथन एस एन साहब ! बधाई !!
@Harish Chandra Lohumi, dhanyavad harish ji.
अति सुंदर दोहों के लिए बधाई
@dr.ved vyathit, dhanyavad ved ji.
वाकई काफी मजबूत हो बढ़िया कविता है…
धन्यवाद सर जी
@anju singh, shukriya anju ji.
महंगाई सुरसा भई मच्छर भर इंसान
रूपया सारा देस का स्विस में अंतर्ध्यान.
एक से बढ़ के एक..हमेशा की तरह शानदार सुखन!
@Reetesh Sabr, शुक्रिया,ज़हे नसीब.