« बुढ़ापा आ ही जाता है | An Awful Day For Jonathan Brown » |
धन्यवाद
Hindi Poetry |
मेरे विचारों की ऊबड़-खाबड़ पथरीली जमीन पर
रोज तुम्हारे कोमल पाँव छलनी होते हैं
और मेरी निर्मम पाशविकता से
रोज तुम टूट कर लड़ती हो
फिर भी उफ़्फ़ नहीं कहती.
मेरे और तुम्हारे बीच निर्णयों की जो कंटीली झाड़ है
उलझ उलझ कर गिरती हो तुम उनसे
और मेरी कटु संवेदनाओं से
रोज तुम मृदुता से झगड़ती हो
फिर भी उफ़्फ़ नहीं कहती.
और मूक मैं –
सब देखता समझता हूँ.
मन ही मन कई बार कहता हूँ
लेकिन तुम्हारे सामने एक बार नहीं कह पाता –
वो एक शब्द –
जिन्हें तुम हज़ार बार जीतती हो मुझसे.
“धन्यवाद”
kya baat ,kya andaj–bahut khoobsurat ,bahut dilkash hai aap ki ye rachna
बहुत सुन्दर अहसास की अभिव्यक्ति ,
अंदाज़- ए – बयान अति मनभावन
हार्दिक अभिवादन
विकास जी मैनें आपकी रचनाओं को काफी पढ़ा है – उनमें दिल तक उतरने की अजीब सी शक्ति है-हर पंक्ति हर शब्द अपने में एक भाव संजोये है-आपकी रचना में अजीब सी कशिश है- इस रचना पर मेरी और से आपको हार्दिक बधाई भगवान् आपकी कलम को हमेशा आगे और आगे बढने और लिखने की शक्ति दे-
वाह, क्या अंदाज़े बयाँ है ! मुझे लगता है, यह बीमारी काफी आम है, 🙂 सुशील जी से पूर्णतयः सहमत हूँ, हर रचना आपकी दिल तक उतरती है!
ati sundar rachna Vikash Ji
Badhaiii
awesome 🙂 hv read ur blog too…padh kar achcha laga…keep it going 🙂