« *** है दौलत ही सुबह वही शाम है…*** | एक “गूंज” ऐसी उठी… » |
आसुओं को मासूमों के, मदिरा में घोलकर पिए जा रहा हूँ……..
Hindi Poetry |
आसुओं को मासूमों के, मदिरा में घोलकर पिए जा रहा हूँ……..
वर्षा झूमकर आयी मेरे देश,
सोचा खुशियाँ बटोर लूँ चाहे जितनी,
अभी ख़ुशी के दो पल ही बीते थे की,
खबर आई कहर बनकर छायी ‘लेह’ पर,
बहा ले गयी अरमान अनगिनत,
चारो और पानी बह रहा था पर,
आँखों में पानी(आंसू) सुख गया था,
चिरनिद्रा के समुन्दर में डूबे असंख्य लोगों की तरह,
मैंने भी कोशिश की डूबने की पर,
खयालों की अनगिनत लहरें,
मुझे ऊपर की ओर धकेलती,
प्रकृति के प्रकोप का कारन ढूंढने पर विवश करती,
मन में मची हलचल को जस तस संभाल कर,
स्वयं से यह सवाल पूछने पर जवाब यही मिला,
प्रकृति के नियमों को तोड़ने का है यह सिला,
बढती आधुनिकता के कारन बढ़ता तापमान,
उपकरणों का गुलाम बनता इन्सान,
कहीं बादल का फटना, तो कहीं बाढ़ का खतरा,
हरदम खुशियाँ बिखेरने वाली वर्षा,
आज अचानक हिंसक कैसे हुई,
मैं ही तो हूँ जिम्मेदार इन सब का,
क्योंकि मैं भी तो समाज का प्रतिनिधित्व करता हूँ,
मैं खुदको मानव कहलाता हूँ, पर क्या हूँ मैं?
रोते बिलखते बच्चों की चीख भी न झकजोर सकी मुझे,
ना मेरे बर्ताव में बदलाव आया, ना मेरी जीवनशैली में,
मैं अब भी निरंतर प्रकृति के नियमों को तोड़ते,
धड़ल्ले से जिंदगी जिए जा रहा हूँ,
आसुओं को मासूमों के, मदिरा में घोलकर पिए जा रहा हूँ.
Bahut-2 khoob.
Dard me puri tarah dubi hai.