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थकन
Anthology 2013 Entries, Hindi Poetry |
अपनी थकन कहाँ उतार दूँ
एक पल के लिए ज़िन्दगी उधार दूँ ?
खो जातें हैं सूखे रेत पर पलकों से चंद बुँदे
कहो न आज इनसे दरिया उतार दूँ
एक पल के लिए ज़िन्दगी उधार दूँ ?
टहनियों पर पत्ते बोहुत कम हो गये हैं
पतझड़ कभी जाता नहीं कैसे इन्हें बहार दूँ
एक पल के लिए ज़िन्दगी उधार दूँ ?
इस मतलबी दुनिया में मै भी मतलबी हो गयी
जरा ठहरो ! थोडा मतलब निकाल लूँ
एक पल के लिए ज़िन्दगी उधार दूँ ?
होती रहती है दर्द की बारिश
बन जातें हैं दर्द के गड्ढे
थोड़ी सुख की मिटटी उधार दोगे?
गड्डे नहीं भरेंगे गहराई कम होगी न
कहो न एक पल के लिए ज़िन्दगी उधार दूँ ?
धरती की ब्याकुलता इतनी क्यों बढ़ गयी
खुद से झरने फूटने पर भी प्यासी क्यों रह गयी
इसके तपन को थोडा करार दूँ
कहो न एक पल को ज़िन्दगी उधार दूँ ?
मौन से खड़े तुम ? कही मेरी निशब्दता
तुम पर भी तो हावी नहीं हो गयी ?
या फिर तुमने भी अपना सिर्फ मतलब निकाला है?
बड़ी मनभावन रचना
वैसे एक बात तो बहुत सही है,
आपकी इस रचना के अंदाज़ में बहुत मतलब भरा है,
और हर बार पढ़ने पर अलग अलग होकर निकलता है .
बहुत सुन्दर
हार्दिक बधाई, keep it up
@Vishvnand,
dhanyabaad aapka is utsahvardhan k liye !!
Great Thinking, Nice Thoughts and Complete Analysis.
Congrats !!!!!
@nitin_shukla14,
thanku !!
बहुत अच्छी कविता है पल्लवी….गहरे भाव प्रकट करती हुई
keep writing….
@Tushar Mandge,
thanx for encouragement!
good effort pallawi,,i like d imagery nd d way u hv chosen words over here..keep sharing 🙂
@prachi sandeep singla, \
tthanku prachi!!