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रौशनी
Hindi Poetry |
अगरचे बहार धुंधलापन होता,
तो शायद कभी गिला न होता,
शिकवा तो यही है,
की नज़रों में धुंध है…
मैं मुसाफिर तनहा, और मंजिल दूर…
इस से डरा कब था मैं ?
पर तन्हाई भी तनहा है,
यह कभी सोचा न था…
तेरी दुनिया की रंग-रलियाँ,
मुझे भला कब अज़ीज़ रहीं,
बस रौशनी, सिर्फ रौशनी…
इस से कम कुछ तस्लीम नहीं…
***विकास राय भटनागर***
बहुत उम्दा, विकास. तन्हाई तनहा भी हो सकती है- हमने भी सोचा न था. चौथी और पांचवी पंक्तियों में थोड़ी त्रुटियाँ है. सुधार लीजिये.
@vmjain,
Thanks so much for the feedback…have made the spelling corrections…rgds, vikas.
achchi lagi 🙂 keep it up
thanks prachi…rgds, vikas.
बहुत सुन्दर लगी|
बस रौशनी, सिर्फ रौशनी…
इस से कम कुछ तस्लीम नहीं…
@parminder,
many thanks…rgds, vikas
Very nice sir..!!
Shukaria Divya…