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अंत की शुरुआत
Anthology 2013 Entries, Hindi Poetry |
१
वक्त के साथ साथ
खोते जाते हैं सपने.
बेचकर आशायें,
खरीद लिये जाते हैं अनुभव.
लड़का ठहर जाता है
आदमी होने के बीच में कहीं.
और लड़की बन जाती है औरत
औरत हो जाने के बहुत पहले.
आशाओं को बेच खरीदा गया अनुभव
रहता है ताकता, मूक बधिर सा.
२
एक टुकडा जीवन में,
सच के दो टुकड़े
और प्रेम के ढाई
मिल कुछ ज्यादा हो जाते हैं.
सो शुरु होता है काटना धीरे धीरे
पहले पहल बाहर
और फिर अंदर.
नोट खतम कर देती है
चोट और कचोट.
मज़बूरी लगने वाली नीरसता
बनती जाती है एक जरूरत.
अफ़ीमची शांति के खिलाफ़
सबकुछ आतंकवाद हो जाता है.
कविता के शीर्षक और कविता में कुछ तालमेल नहीं बैठ रहा है. वैसे भाव काफ़ी सुंदर हैं.
@U.M.Sahai, ये तो बस देखने का नजरिया है सर. जो लिखा है, जब ’वैसा’ होता है तो वो एक अंत की शुरुआत ही होती है. अंत आदमियत की हो, भावात्मकता की या चरित्र की.
सशक्त हस्ताक्षर है आप कविता की भावभूमि के. अर्थ गाम्भीर्य और अनवद्य व्यंजना के धनी हैं आप. बधाई. सुरम्य विम्ब संयोजन और नितांत नवीन तेवर.
@siddhanathsingh, आपसे ऐसी टिप्पणी पाकर कृतार्थ हुआ. बहुत बहुत आभार.
आपकी लेखनी अमूर्त भावनाओं को शब्दों की छेनी से साकार मूर्त देने की असीमित शक्ति रखती है – गहन अर्थ को समेटे आपकी इस रचना के लिए हार्दिक बधाई विकास जी
गहन अर्थ से भरी रचना है. अच्छी लगी.
गहन, वैचारिक बहुत प्यारी मनभावन रचना …
विचारों के शुरुवात को अंत से और अंत को शुरुवात से जोड़ती हुई
हार्दिक बधाई
Stars = 4 + + +
another hit vikash 🙂 loved it और एस.एन सर की टिप्पणी से पूर्णतया सहमत भी…ऐसे ही लिखते रहिये दोस्त