”मैं ”आप” और ”परिवर्तन”
हाँ , मै प्रारंभ में सीधी और सरल थी
‘आपने’ मेरी सरलता का गलत उपयोग किया
शब्दों के जोर पर सहमने वाली मै” चालाक और चतुर हो” गयी
आपका तो पता नहीं पर खुद को छलने लगी
खुद को ठगे जाने के दर्द ने मुझे ”भावुक” बना दिया
फिर आपने मेरी भावना से हर पल खेला
मेरी भावनाए फिर मरती गयी
मैंने भावानाओं को ”ब्याभारिकता” का आवरण दे दिया
फिर आपने शब्दों के बरछे से आवरण छलनी कर दी
मै फिर अब्यवस्थित हो गयी
पर आज मै चट्टान हूँ
यहाँ प्रहारों का कोई अर्थ नहीं
एक सर्द चट्टान हूँ
आपके शब्द भी मुझे तोड़ नहीं सकते
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अच्छी रचना, पल्लवी, पर कुछ शब्दों को ठीक करना होगा, जैसे छलली को छलनी, सब्द को शब्द और थोड को तोड़ आदि.
@U.M.Sahai, dhanyabaad sir maine sudhar kar diya hai
सुन्दर भावनिक रचना,
मनभावन.
कुछ शब्द जो गलत छपे है, रचना की गरिमा को बिगाड़ रहे हैं. उन्हें edit कर सुधारने की आवश्यकता है
@Vishvnand, dhanyabaad sir
अच्छी रचना, हिज्जे की गलतियाँ सुधार दें तो चार चाँद लग जाएँ. नीचे लिखा नोट रचना की व्यापकता को सीमाबद्ध करता है,कविता को व्याख्या की ज़ंजीर में न
जकडिये .
@siddhanathsingh, dhanyabaad sir
sahi kaha aapne note- me ‘samaj’ dene se kavita ki seema ban jaati hai hai
sahi sujhav dene k liye bohut bohut dhanyabaad !!
ह्रदय के छुपे भावों का आईना है आपकी ये रचना बस थोड़ी सी एडिटिंग से ये और भी सुंदर हो जायेगी – मैं आदरणीय श्री वी.आनंद व सिंह साहिब की टिप्पणी से सहमत हूँ- प्रयास सुंदर है- बधाई
@sushil sarna, aaplogon ke feedback se
mujhe bohut prerna milti hai dhanyabaad aapka !!
निसंदेह एक सुंदर प्रयास. एक अच्छी अर्थपूर्ण और भाव प्रधान कविता उभर कर आई है.
@vmjain, dhanyabaad aapka !!
पल्लवी, कविता की जीवटता तुम्हारी रचना में स्पष्ट दिखाई दे रही है. सारगर्भित भाव के साथ तुम्हारी रचना बहुत ही सुंदर है. छंद, लय aur जितने भी कविता के अलंकार है, वो धीरे धीरे तुम्हारी कविता स्वत चले आयेगे. अच्छा लिखती हो, लिखते रहना.
@vikas yashkirti, thanku!!
good one 🙂
@prachi, thanx for comment!!