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ख़बरों की मौत
Hindi Poetry |
क्या दुन्ढ़ते हैं हम,
हर सुबह अखबारों में
मौत का समाचार
औरत का बलात्कार
बसों की टक्कर
युवाओं के चक्कर
नेताओं के भाषण
गरीबों का शोषण
उत्कंठा और लाचारी
निराशा और बेरोज़गारी
क्यूँ है? पश्चिम का प्रभाव
अपनों में भारतीयता का आभाव
क्यूँ नहीं पाते हम ?
भारत का सुन्दर चित्र
दुश्मन भी हमारा मित्र
उदाशी में भी हो आशा
कुछ कर गुजरने की अभिलाषा
अपनी धरोहर अपनी संस्कृति
अपनी रीत रिवाज़ अपनी प्रगति
पुरुष की पौरुश्ता ,नारी का सलोना रूप
बुजुर्गों की छाव ऊँचे आदर्शों की धुप
अगर अखबार में यही है हमारी सहभागिता
तो छोड़ देनी चाहिए ऐसी पत्रकारिता
good one Pallawi, keep writing!
@rachana, thanku mam
बहुत अच्छी कविता, पल्लवी, keep writng and sharing.
@U.M.Sahai, thanku sir
शायद औरों की प्रशंसा में किसी को कोई रूचि नहीं होती है.वाही गप्प गोष्ठी सफल और दीर्ग्जीवी होती है जिसमें आलोचना की जाती है,ठकुरसुहाती गानेवालों की बात बहुत ज़ल्दी बंद हो जाती है. अधिअकंश manushy ओं का स्वभाव ही बकौल श्री हरिशंकर परसाई सूअर जैसा होता है जो गन्दगी पर ही टूट पड़ना चाहता है. क्या कीजियेगा.
@siddhanathsingh, ji aapki baat se sehmat hu
रचना सुंदर है,भाव अच्छे हैं,वास्तविकता के करीब है लेकिन कुछ एडिटिंग की जरूरत है – प्रयास के लिए बधाई
@sushil sarna, dhanyabaad sir