शब्द, ऐसे ना थे…..!!!!!!!!
शब्द,
ऐसे ना थे,
निकलते तो थे,
पहुचते भी तो थे,
गलियाँ खुद तलाशते थे,
पर,
स्तब्ध,
ऐसे ना थे,
खिलते भी तो थे,
पलकों पर,
होंठों पर,
कली बन कर,
गली बन कर,
मंज़िल तलाशते भी तो थे,
मेहेक बन कर,
महफ़िल तलाशते भी तो थे,
नि:शब्द,
ऐसे ना थे,
पर अब,
गहराई के गर्त में छुपे,
तलाश रहे
आवाज़ अपनी,
बाहर जैसे,
कोई डसने,
खड़ा हो,
या पड़ा हो कोई,
कशमकश से घिरा,
अंधेरा,
जाने कब,
बंद हो गये,
चलना वो तीर,
अधीर,
नग्न से,
सन्ग्लग्न से,
स्वयं की तलाश में,
क्योंकि,
शब्द,
ऐसे ना थे………………..
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एक अच्छी रचना है .. बहुत बढ़िया …
शब्द,
ऐसे ना थे………………..
thnku sir…
Bahut Khoob………..
Sundar Rachna……
thnku sir….
sunder………..
dhanyawad….
hmmmm…….pasand aayi 🙂
@Preeti Datar, thnku preeti ji…